देश 21 दिनों के लॉकडाउन में है। कोरोना वायरस का डर अब दहशत के उस मुकाम पर है, जहां लोग घरों में बंद हैं और हर बढ़ते कोरोना संक्रमण के साथ खुद को बचाने में जुटे हुए हैं। अच्छी बात यह है कि दफ्तर और बाजार से दूर लोग घरों में अपनों के साथ समय बिता रहे हैं। टीवी और मोबाइल पर फिल्में देख रहे हैं। किताबें पढ़ रहे हैं। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि लोगों की रुचि अचानक से उन फिल्मों और शोज के प्रति बढ़ गई है, जिसमें तबाही, संक्रमण और खौफ से जुड़े प्लॉट हैं। बदल गया है लोगों का सर्च इंटरेस्ट साल 2011 में रिलीज स्टीवन सोडरबर्ग की फिल्म 'Contagion' देखने वाले दर्शकों की संख्या ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर अचानक बढ़ गई हैं। इंटरनेट पर लोगों का सर्च इंटरेस्ट भी बदल गया है। सर्च इंडेक्स यानी कोई चीज गूगल पर कितनी बार सर्च की गई। गूगल पर लोग Contagion और ऐसी ही दूसरी फिल्मों को जमकर सर्च कर रहे हैं। न्यूक्लियर पावर प्लांट की वह घटना कोरोना अब वैश्विक महामारी बन गई है। अमेरिका से लेकर कमोबेश हर देश के लोग चीन की आलोचना कर रहे हैं, क्योंकि यह वायरस वहीं से फैला है। बीते कुछ हफ्तों में भारत में लोग न सिर्फ एक दूसरे को न सिर्फ Contagion देखने की सलाह दे रहे हैं, बल्कि एचबीओ की सीरीज Chernobyl देखने वालों की संख्या में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है। यह एक न्यूक्लियर तबाही की कहानी है। एक न्यूक्लियर प्लांट में दुर्घटना होती है और देखते ही देखते हजारों लोग मर जाते हैं। कोरोना के बारे में अधिक से अधिक जानने की चाहत ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर यह हो क्यों रहा है? क्यों लोग इस तरह की फिल्मों और सीरीज को देखना पसंद कर रहे हैं। जवाब है- डर और जिज्ञासा। डर की आगे क्या होगा और जिज्ञासा कि इससे कैसे निपटा जाए। इंटरनेट पर सर्च रिजल्ट्स बताते हैं कि लोगों की दिलचस्पी कोरोना वायरस में बड़ी तेजी से बढ़ी है। लोग वायरस के बारे में पढ़ रहे हैं और इससे निपटने के उपास ढूंढ़ रहे हैं। हॉरर फिल्मों को लेकर भी बढ़ा क्रेज घर बैठे लोगों में अचानक से हॉरर फिल्मों को लेकर भी क्रेज बढ़ा है। MxPlayer से लेकर तमाम ऐसे प्लेटफार्म्स पर हॉरर फिल्में देखने वाले दर्शकों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। डॉ. जेफरी एस. सार्टिन नेब्रास्का में रहते हैं। वह संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ हैं। साल 2019 में उनका एक पेपर पब्लिश हुआ। जेफरी इसमें कहते हैं, 'हॉरर फिल्मों को देखने की हमारी चाहत इसलिए भी होती है कि हम पर्दे पर कल्पना की दुनिया के डर को देखकर अपने साइकोलॉजिकल डर से बाहर निकलते हैं।' क्या कहते हैं विशेषज्ञ यह जेफरी का यह पेपर क्लिनिकल मेडिसिन एंड रिसर्च जनरल में छपा है। वह इसमें आगे कहते हैं कि संक्रामक बीमारी, महामारी से जुड़ी फिल्में देखने के पीछे हमारी मनोदशा यह होती है कि हम उसके जरिए यह समझने की कोशिश करते हैं कि वह हुआ कैसे, किन कारणों से वह फैला। फिल्में हताशा से निपटने का तरीका डॉ. जेफरी आगे कहते हैं, 'मैं कोई इतिहाकार नहीं हूं। लेकिन मौजूदा समय में जो कुछ हो रहा, वह आधुनिक समाज के लिए अभूतपूर्व है। आज धरती पर मौजूद हर पांच में से एक शख्स घर में बंद रहने को मजबूर है।' डॉ. जेफरी आगे कहते हैं कि लोग फिल्मों में जो देखते हैं, उससे अपनी हताशा से निपटने के लिए तरीके सीखते हैं।' यह भी पढ़ें:
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